[1]
मां कहती थी
जब धरती पर आता है
मनुष्य
रोता है
जब हम रोते हैं तो
हमारे भीतर
और बाहर
कोई नया मनुष्य
जन्म लेता है
याद आ रही थी
मां की बात
जब मोबाइल पर
सुन रहा था
एक लड़की का रोना
उसे चुप होने के लिए
नहीं कहा
देख रहा था
उसके रोने में उसका होना
हमारा हंसना
हमारा रोना
बोलना ही होता है
आखिर हमारा होना
क्योंकि
प्रेत नहीं बोलते
मुर्दे नहीं रोते
जब कोई नहीं रोएगा
दुनिया में नहीं होगा
कोई मनुष्य
कोई परिंदा कहीं
नहीं चहचहाएगा
धरती पर नहीं होगा
कोई जीव प्राणी
न कहीं हवा होगी
न कहीं पानी
[ 2 ]
रमाकांत
लड़की को मोबाइल
पर रोते देख (सुन)
याद आई तुम्हारी कहानी
'तीसरी मंजिल की नदी'
जिस बच्चे ने
नदी नहीं देखी थी
उसने तीसरी मंजिल पर
रेडियो पर सुनी थी
लड़की को
मोबाइल पर रोता सुनते हुए
जब नदियां सूख रही
हैं तो
मैं सुन रहा था
लड़की को रोते हुए
एक लड़की को
नदी होते हुए
[ 3 ]
बसों और कारों ने दूर कर दिया
घर स्कूल अस्पताल
मोबाइल ने दोस्त
बात कर सकते हैं उनसे
फोन पर
जब कोई रो रहा हो फोन पर
तो क्या कर सकता है
कोई बंदा
नहीं भेज सकता उसे
काट कर अपना कंधा
अच्छा लिखा
ReplyDeleteजब कोई नहीं रोएगा
ReplyDeleteदुनिया में नहीं होगा
कोई मनुष्य
Achchha hai.
Beech-beech meN aapko padhta rahta huN.
जब नदियां सूख रही
ReplyDeleteहैं तो
मैं सुन रहा था
लड़की को रोते हुए
एक लड़की को
नदी होते हुए
waah bhavpurn sunder rachana badhai
यही आज की दुनिया है-बढ़िया अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteaapke blog kee pehlee jhalak ne hee prabhaavit kiya aur nischay hee apke andaaj ne bhee , swaagat hai, likhte rahein.
ReplyDeleteस्वागत है...शुभकामनायें.
ReplyDeleteअच्छी रचनाएं ... बधाई।
ReplyDeleteब्रिजेश्वर जी
ReplyDeleteबहूत सुन्दर है आपका ब्लॉग.....
तीनों की तीनों रचनाएँ खूबसूरत हैं
ये पंक्तियाँ तो बहूत ही नायाब हैं.......
जब कोई रो रहा हो फोन पर
तो क्या कर सकता है
कोई बंदा
नहीं भेज सकता उसे
काट कर अपना कंधा
बहुत ही सुन्दर रचनाऎं......आभार
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