किला

किला देखते हुए
सोचती है वो
क्या ये पत्थर
भारी हैं उसके दुखों से
उसका तो दुख
एक किला है
जिसमें
पत्थरों की तरह
एक के ऊपर एक
रखे हैं
सारी दुनिया के दुख
समा गये हैं उसमें
और वो ये भी भूल गयी है, कि
इनमें से कौन सा दुख
उसका अपना है, और
कौन सा किसका
क्योंकि उसका दुख तो
एक किला है-
जिसमें समाये हैं
सारी दुनिया के दुख

2 comments:

  1. सुंदर कविता है.

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  2. बहुत अच्छा लिखा है आपने ...स्वागत है

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