पौने पांच बजे : ईश्वर और बाज़ार

[1]

सुबह पौने पांच बजे

दफ्तर पहुंचना हो तो

तो सुबह चार बजे

नींद से निकलना पड़ेगा

रात भर नींद न भी आई हो

इस वक्त शहर नींद

में चला जाता है
रात भर का जगा

गहरी नींद में

ले रहा होता है खर्राटे

सुनी जा सकती हैं

उसकी सांसें

यह वक्त होता है

चोरों और सेंधमारों के लिए

जिनकी खबरों से

भरे होते हैं अखबार

लेकिन मुझे

कहीं नहीं जाना था

जाना था एक लड़की को

रात भर सोचता रहा

कैसा होगा उसे

पौने पांच बजे

टाइम और स्पेस में देखना

नींद से निकलकर

आधा सोया आधा जागा

निकल आया घर से

जैसे चोरों की तरह

अपने ही घर में लगाकर सेंध

शहर की सड़क पर

जो उसके घर को जाती है

सुबह होने से पहले

का अंधेरा था

ड्यूटी करके लौट रहे थे

रात के रिपोर्टर

साइकिलों पर लेकर अखबार

न्यूज पेपर वेंडर

शटर गिरे थे दुकानों के

खिड़कियां और दरवाजे

बंद थे दुकानों के

निकल आया दूर तक

चलता रहा

जब तक सुबह नहीं हुई

बरसों बाद देखी थी

शहर में सुबह होते हुए

और लौट पड़ा

दिन की ओर

देखते हुए कि

सड़क पर अब भी

थी लैम्पपोस्टों की पीली रोशनी

जैसे उन्हें पता ही न हो

कि सुबह हो गई या नहीं

जानते थे कि

एक अंधेरा होता है

दिन में भी शहर में

आप उसे देख सकते हैं

सुबह होने के साथ

रात के आखिरी पहर में



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वह ईश्वर को नहीं मानती

नहीं करती पूजा पाठ

न जाती है मंदिर

लेकिन यह शहर

जहां रात के आखिरी पहर में

सुबह के साथ अन्धेरा होता है

बना देता है आदमी को

यहां पर

नौकरी है, मैंने देखा कि

कैसे टीवी पर

भक्ति का प्रोग्राम

पेश करके

उसे कहना पड़ रहा

था ईश्वर है

जो कि कहीं नहीं था

सोच रहा था

वक्त लगेगा उसे

'वर्गमैन' की एक्ट्रेस 'लुव उल्मान' होने

में कि क्लोजअप में

नहीं करूंगा ईश्वर की सत्ता

को स्वीकार

क्योंकि लगेगा -

मैं झूठ बोल रही हूं



[3]



झूठ बोल रहे हैं

दुनिया भर के

टीवी चैनल और अखबार

वह भी सुबह

पौने पांच बजे

जब बंद होते हैं अभी

दुकानों के शटर

घर में पहुंच जाता है

बाज़ार

ईश्वर अगर है भी

तो उसकी जगह होता है -

ईश्वर का इश्तिहार

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