रेड रेज़ [Red Rays]

सुबह सूरज की लाली में
होता है सिंदूर
और पीला होकर
दिखता है
किसी सुहागन के माथे पर
सोने की टिकिया की तरह
मुंह अंधेरे उठकर सोचा
चुरा लाऊं
सुबह के सूरज से
चुटकी भर सिंदूर, और
थोड़ा सा सोना
किसी सुहागन के माथे पर
टिकिया के लिए
सूरज निकलने से पहले ही
ब्रेकिंग न्यूज़ में
बता रही थी कंका
सड़के हैं लाल
आततायी लूट के ले गये
सूरज की- लाली, सोना और सुहाग
लोगों को दी जा रही थी हिदायत
कि घरों से बाहर ना निकलें
अगली सूचना तक.

चुंबन

जीवन में पहली बार
लिए चुंबन का स्वाद
अब भी याद है
जब जिह्वा ने
स्पर्श किया था
तुम्हारे दांतों का
ठंडापन
बीयर के गिलास में
आइस क्यूब डालते
मैंने सोचा
कि कैसे
प्रेम की स्मृतियों में
आधा खाली गिलास भी
आधा भरा हुआ लगता है

घर का रास्ता

रात
जब कभी
नींद और सपना
टूटता है एक साथ
लगता है
इंटरवल हुआ है फिल्म का
जब फिल्म क्रिटिक का ओढ़ना-बिछौना
सोना-जागना
खाना-पीना, हो जाए
तो
घर और सिनेमाघर में
फर्क नहीं रहता
खासकर जब कोई
सपना और नींद
एक साथ टूटे
यह भी लग सकता है
फिल्म देखते देखते सो गये
पता ही नहीं चला
फिल्म कब खत्म हो गयी
निकल आए घर से बाहर
घऱ को सिनेमाघर समझकर
जैसे कोई भूल जाए
घर का रास्ता
लौटने को
उस अंजुमन में
बार-बार.

एक लड़की के नदी होते हुए [पार्ट - 2]

उसके रोने और सोने के बीच
होती है एक नदी
उसके अपने आंसुओं की
जो उसे पार करनी होती है
नदी के पार होता है
उसके सपनों का
प्रति-संसार, जहां
कभी किसी उत्सव से
पागल होकर
दौड़ता है हाथी
और ऊंचाई से गिर कर
बच्चे के खिलौने की तरह
टूट जाता है
कभी किसी खेत में खड़ा
बिजूका
कर रहा होता है
उसके सपनों की रखवाली
कोई पहाड़ों से
लाता है चिलम
और मैदानों में उठता है धुंआ
कभी होती है फिल्म
सिनेमा घर का अंधेरा
पर्दे पर, सिर के ऊपर
रोशनी की शहतीर से
गुजरती आंसुओं की नदी में
डूब जाती है हिरोइन
नदी जो सूख जाती है
फिल्म खत्म होते ही
पर नहीं सूखती
उसके आंसुओं की नदी
जो उसे खुद ही
पार करनी होती है
बिना नाव, बिना माझी के
कभी इस पार
कभी उस पार.

बुद्ध

उसे दुख नहीं है
हमारे संत होने का
ना उसे यकीन है
ईश्वर और किसी संत पर
लेकिन मुझे लगता है
कि कहीं उसके दुख
मुझे बना न दें मुझे संत
निकल जाऊं
रात को
बुद्ध की तरह
घर छोड़ कर
लेकिन रोक लेती है
जैसे उसकी ही आवाज
कहां जाओगे
कहां मिलेगा
तुम्हे
अपने लिए कोई
बोधिवृक्ष
कोई पेड़
कोई छांव
कोई गांव
सुनकर
रुक जाते हैं पांव

पौने पांच बजे : ईश्वर और बाज़ार

[1]

सुबह पौने पांच बजे

दफ्तर पहुंचना हो तो

तो सुबह चार बजे

नींद से निकलना पड़ेगा

रात भर नींद न भी आई हो

इस वक्त शहर नींद

में चला जाता है
रात भर का जगा

गहरी नींद में

ले रहा होता है खर्राटे

सुनी जा सकती हैं

उसकी सांसें

यह वक्त होता है

चोरों और सेंधमारों के लिए

जिनकी खबरों से

भरे होते हैं अखबार

लेकिन मुझे

कहीं नहीं जाना था

जाना था एक लड़की को

रात भर सोचता रहा

कैसा होगा उसे

पौने पांच बजे

टाइम और स्पेस में देखना

नींद से निकलकर

आधा सोया आधा जागा

निकल आया घर से

जैसे चोरों की तरह

अपने ही घर में लगाकर सेंध

शहर की सड़क पर

जो उसके घर को जाती है

सुबह होने से पहले

का अंधेरा था

ड्यूटी करके लौट रहे थे

रात के रिपोर्टर

साइकिलों पर लेकर अखबार

न्यूज पेपर वेंडर

शटर गिरे थे दुकानों के

खिड़कियां और दरवाजे

बंद थे दुकानों के

निकल आया दूर तक

चलता रहा

जब तक सुबह नहीं हुई

बरसों बाद देखी थी

शहर में सुबह होते हुए

और लौट पड़ा

दिन की ओर

देखते हुए कि

सड़क पर अब भी

थी लैम्पपोस्टों की पीली रोशनी

जैसे उन्हें पता ही न हो

कि सुबह हो गई या नहीं

जानते थे कि

एक अंधेरा होता है

दिन में भी शहर में

आप उसे देख सकते हैं

सुबह होने के साथ

रात के आखिरी पहर में



[2]



वह ईश्वर को नहीं मानती

नहीं करती पूजा पाठ

न जाती है मंदिर

लेकिन यह शहर

जहां रात के आखिरी पहर में

सुबह के साथ अन्धेरा होता है

बना देता है आदमी को

यहां पर

नौकरी है, मैंने देखा कि

कैसे टीवी पर

भक्ति का प्रोग्राम

पेश करके

उसे कहना पड़ रहा

था ईश्वर है

जो कि कहीं नहीं था

सोच रहा था

वक्त लगेगा उसे

'वर्गमैन' की एक्ट्रेस 'लुव उल्मान' होने

में कि क्लोजअप में

नहीं करूंगा ईश्वर की सत्ता

को स्वीकार

क्योंकि लगेगा -

मैं झूठ बोल रही हूं



[3]



झूठ बोल रहे हैं

दुनिया भर के

टीवी चैनल और अखबार

वह भी सुबह

पौने पांच बजे

जब बंद होते हैं अभी

दुकानों के शटर

घर में पहुंच जाता है

बाज़ार

ईश्वर अगर है भी

तो उसकी जगह होता है -

ईश्वर का इश्तिहार

एक लड़की के नदी होते हुए [पार्ट - 1]

[1]
मां कहती थी
जब धरती पर आता है
मनुष्य
रोता है
जब हम रोते हैं तो
हमारे भीतर
और बाहर
कोई नया मनुष्य
जन्म लेता है
याद आ रही थी
मां की बात
जब मोबाइल पर
सुन रहा था
एक लड़की का रोना
उसे चुप होने के लिए
नहीं कहा
देख रहा था
उसके रोने में उसका होना
हमारा हंसना
हमारा रोना
बोलना ही होता है
आखिर हमारा होना
क्योंकि
प्रेत नहीं बोलते
मुर्दे नहीं रोते
जब कोई नहीं रोएगा
दुनिया में नहीं होगा
कोई मनुष्य
कोई परिंदा कहीं
नहीं चहचहाएगा
धरती पर नहीं होगा
कोई जीव प्राणी
न कहीं हवा होगी
न कहीं पानी
[ 2 ]
रमाकांत
लड़की को मोबाइल
पर रोते देख (सुन)
याद आई तुम्हारी कहानी
'तीसरी मंजिल की नदी'
जिस बच्चे ने
नदी नहीं देखी थी
उसने तीसरी मंजिल पर
रेडियो पर सुनी थी
लड़की को
मोबाइल पर रोता सुनते हुए
जब नदियां सूख रही
हैं तो
मैं सुन रहा था
लड़की को रोते हुए
एक लड़की को
नदी होते हुए
[ 3 ]
बसों और कारों ने दूर कर दिया
घर स्कूल अस्पताल
मोबाइल ने दोस्त
बात कर सकते हैं उनसे
फोन पर
जब कोई रो रहा हो फोन पर
तो क्या कर सकता है
कोई बंदा
नहीं भेज सकता उसे
काट कर अपना कंधा

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