रात
जब कभी
नींद और सपना
टूटता है एक साथ
लगता है
इंटरवल हुआ है फिल्म का
जब फिल्म क्रिटिक का ओढ़ना-बिछौना
सोना-जागना
खाना-पीना, हो जाए
तो
घर और सिनेमाघर में
फर्क नहीं रहता
खासकर जब कोई
सपना और नींद
एक साथ टूटे
यह भी लग सकता है
फिल्म देखते देखते सो गये
पता ही नहीं चला
फिल्म कब खत्म हो गयी
निकल आए घर से बाहर
घऱ को सिनेमाघर समझकर
जैसे कोई भूल जाए
घर का रास्ता
लौटने को
उस अंजुमन में
बार-बार.
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